Thursday, January 21, 2010

शिवना के सरस्वती पूजन में शामिल हुए बुध्दिजीवी, शिवना के नये काव्य संग्रह अनुभूतियां का विमोचन

अग्रणी साहित्यिक संस्था शिवना ने वसंत पंचमी के अवसर पर ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का पूजन समारोह आयोजित किया । आयोजन में शहर के साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद तथा बुध्दिजीवी शामिल हुए । स्थानीय पीसी लैब पर आयोजित सरस्वती पूजन तथा गोष्ठी के कार्यक्रम में शिक्षाविद् प्रो: डॉ. भागचंद जैन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी की प्राध्यापक डॉ. पुष्पा दुबे ने की ।

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सर्वप्रथम पंडित शैलेश तिवारी के मार्गदर्शन में शिवना के संस्थापक वरिष्ठ साहित्यकार श्री नारायण कासट ने सभी अतिथियों के साथ माँ सरस्वती का विधिपूर्वक पूजन किया ।

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तथा सभी उपस्थित जनों ने माँ सरस्वती को पुष्पाँजलि अर्पित की ।

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प्रथम खंड में विचार गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए संचालक के रूप में श्री नारायण कासट ने वसंत पंचमी तथा निराला जयंती पर विस्तृत प्रकाश डाला । वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री कासट लम्‍बी बीमारी से लगभग ढाई साल तक ग्रस्‍त रहने के बाद किसी साहित्यिक आयोजन में उपस्थित हुए । वे पिछले ढाई साल से लगातार बिस्‍तर पर ही रहे । उन्‍होंने अपने संबोधन में कहा कि मुझे तो अब लग ही नहीं रहा था कि मैं अब वापस आ पाऊंगा किन्‍तु आज पुन: यहां आकर मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरा नवजीवन हो गया है । ये सबकी शुभकामनाओं का ही फल है ।

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उन्होंने कहा कि जो पुरातन हो चुका है उसका अंत और नूतन का प्रारंभ ही बसंत है । इसे हम कह सकते हैं कि पुरातन का बस अंत ही बसंत हैं ।

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इस अवसर पर शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित नये काव्य संग्रह इंग्लैंड के भारतीय मूल के कवि श्री दीपक चौरसिया मशाल के अनुभूतियाँ को शिवना के श्री रमेश हठीला ने माँ सरस्वती के चरणों में अर्पण किया  । साथ ही भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित पंकज सुबीर के कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी को भी मां सरस्वती को अर्पित किया गया ।

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मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो. भागचंद जैन ने कहा कि वसंत बताता है कि हमको प्रेम बाँटना सीखना चाहिये । प्रेम और स्नेह बाँटने से मनुष्य जीवन सफल हो जाता है ।

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अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. डॉ पुष्पा दुबे ने कहा कि वसंत पंचमी सरस्वती के अवतरण का दिवस है और हमारी लेखनी को मां सरस्वती के आशीर्वाद की आवश्यकता हमेशा ही बनी रहती है । उन्होंने कहा कि साहित्यकार के लिये संवेदनशील होना सबसे आवश्यक है और ये संवेदना उसे माँ सरस्वती ही प्रदान करती हैं । उन्होंने पंकज सुबीर के कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी पर भी चर्चा की ।

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कार्यक्रम के दूसरे खंड में आयोजित काव्य गोष्ठी का शुभारंभ कु. रागिनी शर्मा ने माँ सरस्वती की वंदना के साथ किया । रागिनी शर्मा ने श्री नारायण कासट के आग्रह पर लिंगाष्टक का भी सस्वर पाठ किया । जिस पर श्रोता मंत्रमुग्‍ध हो गये  । उल्‍लेखनीय है कि रागिनी प्रदेश के वरिष्‍ठ छायाकार श्री राजेंद्र शर्मा की सुपुत्री हैं तथा संस्‍कृत में विशेष शिक्षा प्राप्‍त कर रही हैं । कालीदास के संस्‍कृत नाटक में अभिनय भी कर चुकी हैं ।

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कवि गोष्ठी में लक्ष्मण चौकसे ने अपनी छंद मुक्त कविता आगे बढ़ता चल, श्री द्वारका बाँसुरिया ने अपना गीत जीवन रथ के सुख दुख दो पहिये चलना जीवन का सार, कवि लक्ष्मीनारायण राय ने दर्दीली जिंदगी और घुटन भरे गीत, प्रस्तुत की ।

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रागिनी शर्मा ने कविता आज रायाभिषेक हुआ था श्रीराम का, रमेश हठीला ने गीत मेरे अगर गाएँ मेरे अधर, ये तो एहसान होगा मेरे गीत पर, गूंगे प्राणों को मिल जाए स्‍वर माधुरी गुनगुना दें मेरे गीत को आप गर,  श्री शैलेश तिवारी ने छंदमुक्त कविता माँ शारदे को धन्यवाद और पंकज सुबीर ने गीत तेज समय की नदिया के बहते धारे हैं, यायावर हैं, आवारा हैं, बंजारे हैं प्रस्तुत किये ।

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कार्यक्रम का संचालन कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्री नारायण कासट ने अपने कई मुक्तक पढ़े दिल भी ना साथ गुँथे जब तक फूलों का हार अधूरा है, जैसे रागों के प्राण गिना स्‍वर का संसार अधूरा है, और श्रोताओं के बहुत अनुरोध पर उनहोंने अपनी सुप्रसिद्ध नथनिया गजल का सस्वर पाठ किया । उनका एक  मुक्‍तक-

आंखों में वासंती आमंत्रण आंज कर,

जूड़े में मदमाती मलय गंध बांध कर

गुपचुप सन्‍नाटे में निकली अभिसारिका,

संयम की लजवंती देहरी को लांघकर 

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अंत में शिवना की ओर से जयंत शाह ने आभार व्यक्त करते हुए अतिथियों को धन्यवाद दिया । कार्यक्रम में सर्वश्री अनिल पालीवाल, राजेन्द्र शर्मा, हितेन्द्र गोस्वामी, उमेश शर्मा, चंद्रकांत दासवानी, श्रीमती जैन, नरेश तिवारी, सुनील शर्मा, राजेश सेल्वराज, सुरेंद्र ठाकुर, सनी गोस्वामी, सुधीर मालवीय सहित प्रबुध्द श्रोता उपस्थित थे ।

Wednesday, January 20, 2010

टाटा बिड़ला डालमिया तो गोद में लेटे हैं, क्या हम भारत माता के सौतेले बेटे हैं बत्‍तीस साल से चल रहा एक अनोखा कार्यक्रम सुकवि पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति काव्याँजलि समारोह

टाटा बिड़ला डालमिया तो गोद में लेटे हैं, क्या हम भारत माता के सौतेले बेटे हैं
बत्‍तीस साल से चल रहा एक अनोखे कार्यक्रम सुकवि पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति काव्याँजलि समारोह
सीहोर () ये बहुत ही हैरत की बात है कि कोई कार्यक्रम किस प्रकार से बत्तीस वर्षों से लगातार आयोजित होता आ रहा है । इसके लिये वास्तव में वे सभी लोग धन्यवाद के पात्र हैं जो इस कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं । आज के दौर में ये किसी को भी अविश्वसनीय बात लगेगी कि इस प्रकार से एक कार्यक्रम लगातार होता चला आ रहा है, और वो भी ऐसे कवि की याद में जो इस शहर में अकेला था जिसका कोई परिजन नहीं था ।

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मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव श्रीमती नुसरत मेहदी ने पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति काव्याँतलि समारोह में उक्त आशय के उद्गार व्यक्त किये । कार्यक्रम में देश के वरिष्ठ शायर श्री राम मेश्राम, श्री अनवारे इस्लाम तथा श्री वीरेन्द्र जैन  अतिथि के रूप में उपस्थित थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर डॉ. कैलाश गुरू स्वामी ने की ।
स्थानीय ब्ल्यू बर्ड स्कूल के सभागार में आयोजित पंडित जनार्दन शर्मा स्मृति काव्याँजलि समारोह का शुभारंभ अतिथियों ने माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, तथा दीप प्रज्‍जवलित कर किया । अतिथियों ने पंडित जनार्दन शर्मा के चित्र पर अपनी पुष्पाँजलि भी समर्पित की । गायिका शिरोनी पालीवाल ने माँ सरस्वती की वंदना तथा राष्ट्र की वंदना गाकर काव्याँजलि को प्रारंभ किया । सर्वश्री रामनारायण ताम्रकार, वसंत दासवानी, डॉ. पुष्पा दुबे, जनसंपर्क अधिकारी श्री एल आर सिसौदिया, श्री ओमदीप, श्री जयंत शाह ने पुष्पहार से सभी अतिथियों का स्वागत किया । इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. प्रेम गुप्ता को उनकी सेवाओं के लिये सम्मनित किया गया । श्री शैलेश तिवारी ने पंडित जनार्दन शर्मा के व्यक्तिव तथा कृतित्व पर प्रकाश डालने के साथ साथ पंडित जनार्दन शर्मा काव्याँजलि समारोह पर भी विस्तार से प्रकाश डाला । जिले के वरिष्ठ पत्रकार श्री अम्बादत्त भारतीय की इस समारोह में भूमिका की भी उन्होंने चर्चा की, जो परिजन का निधन हो जाने के कारण इस बार कार्यक्रम में अनुपस्थित थे ।
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काव्याँजलि समारोह का शुभारंभ युवा शायर डॉ. मोहम्मद आजम ने जनार्दन शर्मा को श्रध्दाँजलि देते हुए कुछ इस अंदाज़ में की तुझको जनार्दन न कभी हम भुलाएंगे, गाएंगे तेरे गीत ग़ज़ल गुनगुनाएँगे । उन्होंने अपनी कई ग़ज़लों का पाठ किया ।

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सीहोर के वरिष्ठ शायर श्री रियाज़ मोहम्मद रियाज़ ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए अपनी ग़ज़लें तरीका अब ये अपनाना पड़ेगा, दबे शोलों को भड़काना पड़ेगा और देश का हम क्या हाल सुनाएँ, अंधे पीसें कुत्ते खाएँ, सुनाकर समां बांध दिया ।

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वरिष्ठ शायर तथा साहित्यिक पत्रिकार सुंखनवर के संपादक श्री अनवारे इस्लाम कई ग़ज़लें पढ़ीं, तन पर लिबास मुँह में निवाला नहीं रहा, लेकिन मेरा ज़मीर तो काला नहीं रहा, जो थोड़ी देर गाना चाहता है वो अपना दुख सुनाना चाहता है, इन ग़ज़लों को श्रोताओं ने खूब पसंद किया । 

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कार्यक्रम का संचालन कर रहे युवा साहित्यकार पंकज सुबीर ने ग़ज़ल अजब जादू है अपने मुल्क के थानों में यारों, यहां गूंगा भी आ जाए तो वो भी बोलता है और अपना गीत दर्द बेचता हूं मैं का सस्वर पाठ किया ।

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वरिष्ठ कवि श्री वीरेंद्र जैन ने गई सारे गीत प्रस्तुत किये, टाटा बिड़ला अंबानी तो गोद में लेटे हैं, क्या हम भारत माता के सौतेले बेटे हैं, ये उत्सव के फूल शीघ्र ही मुरझा जाएँगे और खूब अच्छी फसल हुई गीतों पर श्रोता देर तक दाद देते रहे तथा फिर फिर सुनते रहे ।

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मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव श्रीमती नुसरत मेहदी ने कहा कि किसी के लिये भी ये बात हैरानी में डालने वाली हो सकती है कि कोई कार्यक्रम लगातार इतने वर्षों से होता आ रहा है । श्रोताओं के अनुरोध पर उन्होंने तरन्नुम में कई गीत तथा ग़ज़ल सुनाए उनकी ग़ज़ल कतरा के जिंदगी से गुज़र जाऊँ क्या करूँ, रुसवाइयों के खौंफ से मर जाऊँ क्या करूँ और तरन्नुम में गाये गये गीत जिंदगी हमको ढूँढ़ेगी तेरी नजर जब तेरे गाँव से हम चले जाएँगे ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया ।

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देश के वरिष्ठ शायर श्री राम मेश्राम ने अपने विशिष्ट शैली में कई गीत और ग़ज़लें प्रस्तुत किये । मुगालते ही मुगालते हैं, ये हंस हम मन में पालते हैं, हमीं ने फैंके गटर में हीरे, हमीं ये दुनिया खंगालते हैं,  तुम्हारे चम्पू जनम जनम से, हमें भी गुरुवर महान करना  गीतों को खूब पसंद किया गया । 

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कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर डॉ. कैलाश गुरू स्वामी ने जो वफा खुद बेवफा हो उस वफा का क्या करूँ, तुझको भी भुलाया था खुदको भी भुलाया था, यूँ भी तेरी याद आई, यूँ भी तेरी याद आई सहित कई सारी ग़ज़लें पढ़ीं । एक चोट इधर खाई एक चोट इधर खाई जैसे अशआरों पर श्रोता झूमते रहे । कार्यक्रम के अंत में शिक्षाविद् प्रो. बी. सी. जैन, जिला शिक्षा अधिकारी धर्मेंद्र शर्मा,  श्री जयंत शाह,  श्री नरेश मेवाड़ा,  तथा श्री  शैलेष तिवारी ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह प्रदान किये ।

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अंत में आभार वरिष्ठ पत्रकार श्री वसंत दासवानी के व्यक्त किया । देर रात तक चले कार्यक्रम का संचालन वसंत दासवनी तथा मुशायरे का संचालन पंकज सुबीर ने किया ।

Wednesday, January 13, 2010

और हंसते-हंसते सीने पर गोली खाई 356 क्रांतिकारियों ने

सीहोर। सन 1857 व इससे पूर्व गुलाम भारतवर्ष पर जिन अंग्रेजों ने अपना शासन जमा रखा था उन अंग्रेजों की एक सैनिक छावनी सीहोर के सैकड़ाखेड़ी मार्ग पर सीवन नदी के किनारे पर स्थित थी। 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन (गदर) का शंखनाद जब पूरे देश में फैलने लगा तो सीहोर के सैनिकों ने पूरे देश का सबसे व्यवस्थित आंदोलन खड़ा कर दिया। उन्होने सारे अंग्रेजों को खदेड़-खदेड़ कर सीहोर से भगा दिया और सीहोर में अंग्रेजों के समानान्तर सरकार ''सिपाही बहादुर सरकार'' का गठन कर दिया। इस सरकार के ही कई कार्यालय थे, पुलिस फौज भी थे, सारी व्यवस्था थी। लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बनी की भोपाल की बेगम के सहयोग से ''सिपाही बहादुर सरकार'' के सैनिकों को अंग्रेजो ने पकड़ लिया और उसी सैकड़ाखेड़ी स्थित चाँदमारी के स्थान पर सामुहिक रुप से गोली मार दी। वंदे मारतम, इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते यह 356 शहीद सैनिक भारत माता की स्वतंत्रता के लिये 14 जनवरी 1858 को शहीद हो गये...।
यह समृध्द इतिहास मध्य प्रदेश शासन संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित किताब ''सिपाही बहादुर'' में स्पष्ट रुप से उल्लेखित है
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन (गदर) 1857 का प्रारंभ 10 मई को मेरठ के खूनी हंगामे से हुआ था। 11 मई 1857 को बागी सिपाहियों ने लाल किला और दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। इन्होने मुगल बादशाह शहंशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेता बनाकर देशभर के राजाओं-नवाबों से अंग्रेजों को बाहर निकाल देने की अपील की। ये अपील देश में आग की तरह फैल गई। जिसका प्रभाव मालवा और मध्य भारत में सर्वाधिक रहा। यहाँ की फौजों ने अंग्रेजों से लोहा लेना शुरु कर दिया।
इन्दौर से महावीर कोठा के आते ही सीहोर में भी खड़ा हुआ आंदोलन और सारे अंग्रेज भाग गये
सीहोर की फौज के जो सिपाही इन्दौर वह महू में तैनात किये गये थे। उनमें से 14 बागी सिपाही क्रांतिकारी विचारों वाले सिपाही महावीर कोठ के नेतृत्व में वापस सीहोर आ गये थे। महावीर कोठ इन्दौर में रहकर अंग्रेजो की रक्षा करना देशद्रोह मानते थे, उन्होने दिलेरी से इसका विरोध किया और अपने साथ सिपाहियों को भी वापस सीहोर ले आये यह लोग 7 जुलाई को सीहोर आये। यहाँ आते ही सीहोर सैनिक छावनी में बगावत की तैयारी शुरु कर दी गई। सीहोर सैनिक छावनी के तेवर बिगड़ने से पॉलिटिकल एजेंट मेजर हेनरी विलियम रिकार्डरस घबरा गये। इन्होने सिकन्दर बेगम से बातचीत के बाद होशंगाबाद जाने का निर्णय लिया और 3 दिन के अंदर ही घबराकर 10 जुलाई 1857 को पॉलिटिकल एजेन्ट और उनके सभी अंग्रेज अपने परिवार (पत्नि-बच्चे) सहित होशंगाबाद चले गये। उस समय जाने के पहले 9 जुलाई को सीहोर फौज का पूर्ण चार्ज भोपाल रियासत को दे दिया था। सीहोर फौज का चार्ज भोपाल आर्मी के कमांडर इन चीफ बख्शी मुरव्वत मोहम्मद खॉ ने लिया था। इस प्रकार 10 जुलाई के बाद डर के मारे सीहोर छावनी में एक भी अंग्रेज बाकी नहीं रहा था। इसके तत्काल बाद सीहोर फौज के बगावती सैनिकों ने सरकारी खजाने लूट लिये, जेल और मेगजीन की इमारतों को तोड़ डाला। इसके तत्काल बाद अपनी एक सरकार ''सिपाही बहादुर'' के नाम से स्थापित कर दी गई। उन्होने जगह-जगह इस नई सरकार के झण्डे गाड़ दिये और मुसलमानो-हिन्दुओं से अपील की कि वे इस नई सरकार के हाथ मजबूत करें। उन्होने अपनी सरकार के तहत विभिन्न प्रशासनिक कार्यालय भी स्थापित करना प्रारंभ कर दिये।
सीहोर सैनिकों की बगावत मध्य भारत और पूरे मालवा की लड़ाई से अलग थी। यहाँ सबसे व्यवस्थित, मजबूत और सलक्ष्य आंदोलन की समझदार कोशिश की गई थी। यह एक क्रांतिकारी कदम था जिसमें हिन्दुस्तान से अंग्रेजों को निकालकर शासन की बागडोर भी संभाली गई हिन्दुस्तानी जनता के हाथों में यह व्यवस्था दी गई।
सुअर-गाय की चर्बी के कारतूस नष्ट किये
मेरठ की तरह सीहोर के फौजियों की भी एक शिकायत यह थी कि जो नये कारतूस फौज में उपयोग किये जा रहे हैं, उनमें गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। सिपाहियों का विचार था कि अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के दीन-ईमान को खराब कर देना चाहते हैं। इस अवसर पर किसी ने फौज में यह अफवाह फैला दी कि सिकन्दर बेगम अंग्रेजों को खुश करने के लिये छुपकर ईसाई हो गई है। इस अफवाह से फौज में रोष व्याप्त हो गया। जब यह अफवाह सिकन्दर बेगम तक पहुँची तो उन्होने अपने वकील मुंशी भवानी प्रसाद से बातचीत की लेकिन उन्होने शांत रहने की सलाह दी। कारतूसों में चर्बी के उपयोग की शिकायत की जांच फौज के बख्शी साहब की उपस्थिति में सीहोर के हथियार थाने में की गई। इस जांच में 6 पेटी में से 2 पेटी संदेहास्पद पाई गई, जिन्हे अलग कर दिया गया और ये आदेश दिये गये कि संदेह वाले कारतूसों को तोड़कर तोपों के गोला बारुद में उपयोग में लाया जायेगा। परन्तु इस आदेश के पश्चात भी हिन्दुस्तार के वीरे सिपाहियों में रोष्ज्ञ रहा उन्हे विश्वास था कि नये कारतूसों में अवश्य ही गाय और सुअर की चर्बी का उपयोग किया जा रहा है इस प्रकार फौज के बड़े वर्ग में बगावत फैल गई।
वो बहादुर देशभक्त
इस सिपाही बहादुर सरकार शासन को स्थापित करने वाले सीहोर फौज के चार देशभक्त बहादुर अफसर थे। भोपाल राय में यह पहली समानान्तर सरकार थी जो अंग्रेजी सरकार के खिलाफ स्थापित हुई थी। इस सरकार की स्थापना के समय बागी फौजियों को रियासत भोपाल के पॉलिटिकल एजेंट (जो वर्तमान कलेक्ट्रेट निवास में रहता था) के कार्यालय के पास जमा करने के बाद उनके सामने एक जोशीला भाषण रिसालदार वली शाह ने दिया था। जिनके साथ महावीर कोठा, रमजूलाल और आरिफ शाह भी शामिल थे।
उस समय भोपाल रियासत की कानूनी सत्तासीन शाहजहां बेगम (1939-1901) थीं परन्तु उनके कम उम्र होने के कारण एक समझौते के अन्तर्गत जिसको अंग्रेज सरकार की स्वीकृति थी उनकी माँ सिकन्दर बेगम को रियासत का प्रमुख घोषित कयिा गया था। इस प्रकार सिकन्दर बेगम ही वास्तवित रुप से शासक थी। 1857 में रियासत की सैना की तादाद कुल 4265 थी जिसमें 580 घुड़सवार थे। तोपखाना अलग था। जिनमें हल्की और भारी कुल 80 तोपे थीं। जिनके नाम भी विचित्र थे जैसे लीहू-दीहू, कड़क बिजली, जलपुकार, अंगड़ी-बंगड़ी, लैला-मजनू, धूल-धानी, फतह, दौलत आदि।
सीहोर में रहते थे सैनिक
1848 से ही भोपाल की एक फौज को सीहोर में अंग्रेजी सैनिकों की कमान में प्रशिक्षण दिया जाता था (यह प्रशिक्षण केन्द्र चाँदमारी कहलाता था, जो सैकड़ाखेड़ी मार्ग अरोरा अस्पताल के पीछे सीवन नदी के किनारे-किनारे स्थित था) सीहोर में रहने वाली फौज का नाम भोपाल कन्टिनजेंट था। ये फौज सिकन्दर बेगम के पति नवाब नजर मोहम्मद खां और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच हुए एक समझौते के अन्तर्गत गठित की गई थी। इसका पूरा व्यय भोपाल रियासत वहन करती थी। फौज के कर्मचारियों को भर्ती के समय बाण्ड भी प्रस्तुत करना होता था कि वो अंग्रेज सरकार के वफादार रहेंगे। इस फौज के कर्मचारियों को 3-4 रुपया महिना वेतन दिया जाता था, जबकि उस समय सिंधिया, होल्कर रियासत में 7-8 रुपये वेतन दिया जाता था।
और वह हसंते-हसंते शहीद हो गये
14 जनवरी 1858 को इन राष्ट्रवादी सैनिकों को सजा-ए-मौत दी गई। देशभक्ताें ने भारत माता की आजादी के लिये सरकार से समझौता करने के बजाय अत्याधिक दिलेरी से मौत को गले लगाया और अपने सीने पर गोलियाँ खाकर देश के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। किताब हयाते सिकन्दरी के अनुसार 14 जनवरी 1858 को 356 शहीद सैनिकों को जनरल ह्यूरोज के आदेश के बाद गोलियाँ से उड़ा दिया गया। उस वर्ष सीहोर में खूनी संक्राति मनी थी।
दुर्भाग्य से आज तक सीहोर के इन शहीदों का स्मरण न तो सीहोर ने किया और ना ही मध्य प्रदेश शासन ने इस व्यवस्थित इतिहास को आवश्यक रूप से शिक्षा विभाग के पाठय पुस्तकों में ही कोई स्थान दिलाया। आज भी इन शहीदों के समाधियाँ सैकड़ाखेड़ी मार्ग पर स्थित हैं जहाँ विगत कुछ वर्षों से बसंत उत्सव आयोजन समिति द्वारा एक पुष्पांजली कार्यम भर ही किया जाता है जबकि शासन द्वारा न तो इन अवशेषों के संरक्षण के लिये कोई प्रयास किया जा रहा है न ही इस दिन विशेष छुट्टी आदि रखी जाती है।