Thursday, August 26, 2010

क्‍या आपको याद है नाजिया हसन की

क्‍या आपको याद है नाजिया हसन की 1980 में जब एकाएक ही एक नाम संगीत में धूमकेतू की तरह उभरा था और पूरा देश गुनगुना रहा था 'आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आये तो बात बन जाये '' उस समय ये गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि इसने वर्ष के श्रेष्‍ठ गीत की दौड़ में फिल्‍म आशा के गीत शीशा हो या दिल हो को पछाड़ कर बिनाका सरताज का खिताब हासिल कर लिया था । उस समय फिल्‍मी गीतों का सबसे विश्‍वसनीय काउंट डाउन बिनाका गीत माला में लगातार 14 सप्‍ताह तक ये गीत नंबर वन रहा । कुर्बानी के इस गीत को गाने वाली गायिका थी नाजिया हसन और संगीत दिया था बिद्दू ने । एक बिल्‍कुल अलग तरह का संगीत जो कि साजों से जियादह इलेक्‍ट्रानिक यंत्रों से निकला था उसको लोगों ने हाथों हाथ लिया । नाजिया की बिल्‍कुल नए तरह की आवाज का जादू लोगों के सर पर चढ़ कर बोलने लगा । नाजिया का जन्‍म 3 अप्रैल 1965 को कराची पाकिस्‍तान में हुआ था । और जब नाजिया ने कुर्बानी फिल्‍म का ये गीत गाया तो नाजिया की उम्र केवल पन्‍द्रह साल थी । इस गीत की लोकप्रियता को देखते हुए बिद्दू ने नाजिया को प्राइवेट एल्‍बम लांच करने का विचार किया और जब ये विचार मूर्त रूप तक आया तो इतिहास बन चुका था । नाजिया तथा उसके भाई जोएब हसन ने मिलकर 1980 में पूरे संगीत जगत को हिला कर रख दिया था । डिस्‍को दीवाने एक ऐसा एलबम था जो कि न जाने कितने रिकार्ड तोड़ता गया । तब ये ब्‍लैक में बिकता था और लोगों ने इसे खरीदने के 50 रुपये ( तब एल पी रेकार्ड चलते थे जो पचास रुपये के होते थे ) के स्‍थान पर 100 रुपये 150 रुपये भी दिये । हालंकि दोनों भाई बहन मिलकर लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे थे लेकिन नाजिया की आवाज़ का जादू सर चढ़ कर बोला था । आओ ना प्‍यार करें और डिस्‍को दीवाने जैसे गानों ने कुर्बानी की सफलता को कायम रखा था । नाजिया हसन की शिक्षा लंदन में हुई तथा अधिकांश समय भी वहीं बीता । 1995 में नाजिया की शादी मिर्जा इश्तियाक बेग से हुई और फिर एक बेटा अरीज भी हुआ किन्‍तु वैवाहिक जीवन सफल नहीं रहा तथा 2000 में नाजिया का तलाक हो गया । नाजिया ने अपनी कमाई का काफी बड़ा हिस्‍सा चैरेटी में लगा दिया था और वे कई संस्‍थाओं के लिये काम करती रहीं । भारत में भी इनरव्‍हील के माध्‍यम से बालिकाओं के लिये काफी काम किया । 13 अगस्‍त 2000 को 35 साल की उम्र में नाजिया का फेफड़ों के केंसर से निधन हो गया । नाजिया की मृत्‍यु के बाद पाकिस्‍तान सरकार ने नाजिया को सर्वोच्‍च सम्‍मान 'प्राइड आफ परफार्मेंस' प्रदान किया । डिस्‍को दीवाने पाकिस्‍तानी भाई बहन का एक ऐसा एल्‍बम था जो कि उस समय का एशिया में सबसे जियादह बिकने वाला एल्‍बम बना । न केवल दक्षिण एशिया बल्कि रशिया, ब्राजील, इंडोनेशिया में भी उसकी लोकप्रियता की धूम मची । पूरे विश्‍व में 14 बिलियन कापियों के साथ ये एल्‍बम नंबर वन बना और नाजिया सुपर स्‍टार बन गई । नाजिया के गाने डिस्‍को दीवाने ने ब्राजील के चार्ट बस्‍टर में सबसे ऊपर जगह बनाई । इस एल्‍बम में कुल मिलाकर 10 ट्रेक थे जिनमें से 7 बिद्दू के संगीतबद्ध किये हुए थे और 3 अरशद मेहमूद के । गीत लिखे थे अनवर खालिद, मीराजी और हसन जोड़ी ने । 1 आओ न प्‍यार करें (नाजिया हसन ) 2 डिस्‍को दीवाने ( नाजिया हसन ) 3 लेकिन मेरा दिल ( नाजिया हसन ) 4 मुझे चाहे न चाहे ( नाजिया और जोहब) 5 कोमल कोमल ( नाजिया हसन) 6 तेरे कदमों को ( नाजिया और जोहेब) 7 दिल मेरा ये ( नाजिया हसन ) 8 धुंधली रात के ( नाजिया हसन) 9 गायें मिलकर ( नाजिया हसन) 10 डिस्‍को दीवाने ( इंस्‍ट्रूमेंटल) कुर्बानी (1980) के बाद दोनों भाई बहनों ने भारत की कुछ फिल्‍मों जैसे स्‍टार( बूम बूम)(1982) , शीला(1989), दिलवाला(1986), मेरा साया(नयी)(1986), मैं बलवान(1986), साया(1989), इल्‍जाम (1986) जैसी फिल्‍मों में गीत गाये लेकिन आप जैसा कोई की सफलता को नहीं दोहरा सके,उसमें भी कुमार गौरव की सुपर फ्लाप फिल्‍म 'स्‍टार' में तो नाजिया जोहेब के दस गाने थे । वहीं डिस्‍को दीवाने के बाद दोनों ने मिल कर स्‍टार( बूम बूम) (1982), यंग तरंग(1984), हाटलाइन(1987), कैमरा'कैमरा(1992), दोस्‍ती जैसे प्राइवेट एल्‍बम और भी निकाले लेकिन यहां भी डिस्‍को दीवाने की कहानी दोहराई नहीं जा सकी । हालंकि ये एल्‍बम चले लेकिन डिस्‍को दीवाने तो एक इतिहास था । 1982 में आये एल्‍बम बूम बूम के सारे गीतों को कुमार गौरव की फिल्‍म स्‍टार में लिया गया था जिसमें कुमार गौरव ने एक गायक की ही भुमिका निभाई थी । गाने तो पूर्व से ही लोकप्रिय थे किन्‍तु फिल्‍म को उसका लाभ नहीं मिला । तो आइये आनंद लें डिस्‍को दीवाने के गीतों का ।

आओ ना प्‍यार करें डिस्‍को दीवाने दिल मेरा ये कहता है धुंधली रात के दुखिया साये कोमल कोमल पलकें बोझल गायें मिलकर जब हम गीत लेकिन मेरा दिल रो रहा है तेरे कदमों को चूमूंगा मुझे चाहे न चाहे डिस्‍को दीवाने पार्ट 2 इंस्‍ट्रूमेंटल

Tuesday, August 10, 2010

ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार प्राप्त सीहोर के इतिहास पर आधारित पंकज सुबीर का उपन्यास 'ये वो सहर तो नहीं' प्रकाशित

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वर्ष 2010 के लिये भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से पुरस्कृत सीहोर के युवा साहित्यकार पंकज सुबीर का उपन्यास 'ये वो सहर तो नहीं' भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित होकर आ गया है । देश भर के साहित्यिक क्षेत्रों में इस उपन्यास को व्यापक सराहना मिल रही है । पंकज सुबीर की लगातार दो वर्षों में दो पुस्तकें भारतीय ज्ञानपीठ ने प्रकाशित तथा सम्मानित की हैं । यहां ये भी उल्लेखनीय है कि कहानी के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को पहली बार ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार मिला है, इससे पहले दो पुरस्कार कविता के क्षेत्र में मध्यप्रदेश को मिले हैं ।
जिले की अग्रणी साहित्यिक संस्था शिवना द्वारा जारी विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए गीतकार रमेश हठीला ने बताया कि सीहोर के युवा कहानीकार को पंकज सुबीर को उनके उपन्यास के लिये इस वर्ष का ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार दिया गया है। भारतीय ज्ञानपीठ ने 2009 को उपन्यास वर्ष मनाते हुए नवलेखन पुरस्कार को उपन्यास के लिये दिये जाने की घोषणा की थी । इसके लिये एक चयन समिति शीर्ष आलोचक डॉ. नामवर सिंह की अध्यक्षता में बनाई गई थी । जिसमें डॉ. गंगा प्रसाद विमल, शीर्ष कथाकार, नया ज्ञानोदय के संपादक तथा  भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक  रवीन्द्र कालिया, आलोचक डॉ. विजय मोहन सिंह, कथाकार चित्रा मुद्गल, कथाकार अखिलेश सम्मिलित थे । देश भर ये प्राप्त पांडुलिपियों में से चयन करके ये पुरस्कार प्रदान किया जाना था । भारतीय ज्ञानपीठ ने इस नवलेखन के देश के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिये इकसठ हजार रुपये की पुरस्कार राशि प्रदान किये जाने का निर्णय लिया था । तथा चयनित पांडुलिपि को भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित करके का भी फैसला लिया गया था । गत दिवस चयन समिति की बैठक में वर्ष 2010 के ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार के लिये सीहोर के युवा कथाकार पंकज सुबीर तथा दिल्ली के कथाकार कुणाल सिंह को संयुक्त रूप से ये पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय लिया गया । । भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा शीघ्र ही नई दिल्ली में एक भव्य आयोजन में ये पुरस्कार प्रदान किया जायेगा । दोनों संयुक्त विजेताओं को पुरस्कार की राशि का आधा आधा प्रदान किया जायेगा । उल्लेखनीय है कि गत वर्ष भी पंकज सुबीर का एक कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार योजना के अंतर्गत प्रकाशित होकर आया था, जो साहित्यिक हलकों में काफी चर्चित रहा था । मध्य प्रदेश के जिला मुख्यालय सीहोर के युवा कथाकार पंकज सुबीर की पचास से भी अधिक कहानियां देश भर की साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं । पेशे से स्वतंत्र पत्रकार पंकज सुबीर अपनी विशिष्ट शैली तथा शिल्प के लिये जाने जाते हैं । युवा पीढी क़े नये कथाकारों में अपनी व्यंग्य निहित भाषा से वे अपनी अलग ही पहचान बन चुके हैं । उनको जिस उपन्यास ये वो सहर तो नहीं के लिये ये पुरस्कार दिया जा रहा है उसमें उन्होंने 1857 से लेकर 2008 तक की कथा को व्यंग्य निहित भाषा में समेटा है ।  इस उपन्यास में दो समानांतर कथाओं को समेटने की कोशिश की गई है । पहली कथा में 1857 के दौरान सीहोर में हुए सिपाही विद्रोह तथा सिपाही बहादुर सरकार की कथा के माध्यम से उस पूरे कालखंड की व्यापक पड़ताल की की गई है । उसके बाद उसी कथा को देश की वर्तमान व्यवस्था से तालमेल बिठाने का प्रयास किया गया है जिसमें पत्रकारिता, प्रशासन तथा राजनीति का घालमेल दिखाया गया है ।  श्री हठीला ने बताया कि उपन्यास के माध्यम से सीहोर का इतिहास भी पहली बार पुस्तक रूप में सामने आ रहा है । उन्होंने बताया कि दिल्ली के विमोचन के पश्चात सीहोर में भी उपन्यास का भव्य विमोचन किया जायेगा ।