Thursday, June 16, 2011

बहस जारी है

साधन की शुचिता और साध्‍य की शुचिता का जब तक ध्‍यान नहीं रखेंगे तब तक यही होगा
भ्रष्‍टाचार को लेकर हम सब जो कि देश के प्रति भावना रखते हैं, हम सब चिंतित हैं, लेकिन हम किन शर्तों पर इस भ्रष्‍टाचार से लड़ेंगें । साधन और साध्‍य दोनों की पवित्रता ज़ुरूरी है । चाणक्‍य ने कहा है ‘पिशाच हुए बिना संपत्ति अर्जित नहीं होती’’ । और मैंने तो स्‍वयं देखा कि मेरे शहर में बाबा रामदेव एक विवादास्‍पद ठेकेदार के घर न केवल रात रुके बल्कि उसके ही घर भोजन किया क्‍योंकि उसने बाबा के ट्रस्‍ट को थैली समर्पित की थी । ये क्‍या है, ये तो पहले राजा महाराजाओं के जमाने में तवायफें करतीं थीं कि जो सबसे ज्‍यादा रकम देगा उसके घर ही रुकेंगीं । कृष्‍ण जब संधि का प्रस्‍ताव लेकर गये थे तो दुर्योधन के घर नहीं रुके थे विदुर के घर रुके थे, क्‍यों, क्‍योंकि उनके लिये साधन और साध्‍य दोनों की शुचिता महत्‍वपूर्ण थी । फिर चाणक्‍य पर आता हूं कि पिशाच हुए बिना संपत्ति अर्जित नहीं होती । अन्‍ना हजारे के पास व्‍यक्तिगत शुचिता है, मुझे लगता है कि अन्‍ना हजारे पर विश्‍वास किया जा सकता है । बाबा रामदेव अपने संबोधन में बीसियों बार कहते हैं ‘अपने मीडिया के भाइयों से मैं कहना चाहूंगा ‘’ ये सब क्‍या है । किस बात की भूख है प्रचार की । एक बार गौर से देखें कि भारत में पब्लिसिटी के भूखे नौटंकी बाजों और रामदेव में क्‍या फर्क है । पांच हजार करोड़ की संपत्ति का मालिक, जिसकी 35 कंपनियां हों, जिसके पास स्‍काटलैंड के पास अपना द्वीप हो, जो जेट विमान से घूम रहा हो, क्‍या वो क्रांति लायेगा ? इस देश में जब भी क्रांति आई है तो लाने वाले कौन थे, गांधी, जयप्रकाश, भगत सिंह, इन सबने कबीर को ध्‍येय मान कर क्रांति का सूत्रपात किया कि जो घर फूंके आपना चले हमारे संग, तो बाबा भी क्‍यों नहीं फूंकते पहले अपनी 5 हजार करोड़ की संपत्ति को ।
नि:संदेह आधी रात में की कई कार्यवाही निंदनीय थी घोर शर्मनाक थी, लोकतांत्रिक प्रक्रिया का घोर अपमान थी, जिसकी जितनी निंदा की जाये कम है । ये सरकार की बर्बर कार्यवाही थी लेकिन उसकी तुलना हम 1942 या 1975 से नहीं कर सकते कभी नहीं कर सकते । और फिर ये सत्‍याग्रह था या फिर सत्‍ताग्रह । सत्‍याग्रह का अर्थ होता है कि लाठियां खाकर भी नेतृत्‍व करने वाला डटा रहे । लेकिन बाबा की बदहवासी अगर रात को मंच पर देखी हो, तो वो क्‍या थी । क्‍यों महिलाओं के कपड़े पहन कर भागे । मार डालती न सरकार ? तो मरने से क्‍यों डर रहे थे ? सफदर हाशमी तो मौत से नहीं डरा, गांधी तो नहीं डरे, भगत सिंह तो नहीं डरे । लेकिन बाबा जिस प्रकार घबराहट में मंच पर इधर से उधर भाग रहे थे उस समय मौत का डर उनके चेहरे पर साफ था । बाद में मंच से कूदना और माइक पर चिल्‍ला चिल्‍ला कर कहना कि माता बहनें मेरे चारों तरफ सुरक्षा घेरा बना लें । क्‍यों ? क्‍या माता बहनें मरने के लिये हैं ? बाबा रामदेव का ये कहना कि उनकी हत्‍या की साजिश थी, अगर उसको सही भी माना जाये तो भी बाबा उससे क्‍यों डरे । मौत से डरने वाले कभी क्रांति नहीं लाते । बाबा के पार्टनर बालकृष्‍ण का कहना है कि मैं कुछ देख नहीं पाया क्‍योंकि मेरी आंखें कमजोर हैं, अच्‍छा ! दुनिया भर की सारी बीमारियों का इलाज करने वाले बाबा अभी तक अपने पार्टनर की ही आंखें ठीक नहीं कर पाये । अपनी संपत्ति की घोषणा करते समय बाबा और बालकृष्‍ण उन 35 कंपनियों के सवाल पर क्‍यों झुंझला रहे थे, क्‍यों उन पर गोलमोल जवाब दे रहे थे । तो कैसे विश्‍वास किया जाये । इन सारी बातों का मतलब ये कतई नहीं है कि मैं 4 जून की रात की सरकार की कार्यवाही का हामी हूं । मैं उसका घोर विरोधी हूं । लेकिन उसका सबसे अच्‍छा प्रतिकार बाबा लाठी खा कर ही कर सकते थे । यदि बाबा भागने की बजाय लाठी खा लेते तो आज देश में माहौल ही कुछ और होता, लेकिन आज तो ये हाल है कि 30 मई को 10000 लोगों ने बाबा का स्‍वागत यहां सीहोर में किया था और यहीं दो दिन से चल रहे अनशन में 10 लोग भी नहीं है । क्‍यों, हो रहा है ऐसा । बाबा यदि लाठी खा लेते तो देश को लाला लाजपत राय वाला मार्ग फिर से मिल जाता और देश उसी दिशा में मुड़ जाता । लेकिन साधन की शुचिता और साध्‍य की शुचिता का जब तक ध्‍यान नहीं रखेंगे तब तक यही होगा । फिर एक प्रश्‍न कि संत, साधु, संन्‍यासी, गुरू, प्रवचनकार, प्रशिक्षक और महात्‍मा क्‍या से सब एक ही हैं, क्‍या ये अलग अलग नहीं हैं । संत, कबीर से गांधी, गांधी से विनोबा, विनोबा से जयप्रकाश, जयप्रकाश से बाबा आमटे, तक की परंपरा का नाम है, किसी भी भगवा वस्‍त्र वाले को संत कहने से पहले ये देख लो कि ऊपर की परंपरा में किसी ने भगवा वस्‍त्र नहीं पहने । संत वो होता है जो जिनकी सेवा के लिये निकला है उनके जैसा ही हो जाता है । संत तीसरी श्रेणी के रेल के डब्‍बे में चलता है जेट प्‍लेन में नहीं । संन्‍यास का अर्थ होता है विरक्त, त्‍याग , छोड़ना, और 5000 हजार करोड़ के मालिक की विरक्ति कितनी है ये तो सब जानते हैं । अब रही साधु की परिभाषा तो उसकी परिभाषा के दायरे में कम से बाबा को तो हम नहीं लेंगे, मसखरी करने वाला व्‍यक्ति और साधु ? गुरू वो होता है जो हमें जीवन जीने का सही तरीका बताता है, जिसके पास हमारे प्रश्‍नों के उत्‍तर होते हैं, इसके लिये वो हमसे पैसे नहीं लेता । प्रवचनकार जो किसी धर्मग्रंथ के किसी विषय की व्‍याख्‍या कर सकता है । आखिर में आता है प्रशिक्षक जो बाबा रामदेव हैं एक विशेष कला को सिखाने के प्रशिक्षक । जिस काम के लिये वो हमसे पैसे भी लेते हैं । प्रशिक्षक पैसे लेता है और गुरू नहीं लेता, प्रशिक्षक के पास एक ही विषय की विशेषज्ञता होती है गुरू के पास हर विषय की होती है । तो कुल मिलाकर कर ये कि न संत, न साधु, न महात्‍मा, न संन्‍यासी, न गुरू, केवल और केवल योग प्रशिक्षक । योग प्रशिक्षक बाबा रामदेव । योग प्रशिक्षक रामदेव जो प्रशिक्षण के लिये बाकायदा पैसे लेते हैं ।
पंकज सुबीर ( सीहोर म.प्र. ) 09977855399
लेखक भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्‍कार से सम्‍मानित कहानीकार हैं Posted by पंकज सुबीर 16 comments: Navin C. Chaturvedi said...
क्रांति को ले कर अपना एक शेर कोट करना चाहूँगा
क़ौम की पीठ पर लटकेइनक़लाबों की है दुनिया June 15, 2011 9:26 PM Rajeev Bharol said...
वाकई बाबा डटे रहते और लाठियां खा लेते तो जनता में उनकी इमेज आज और होती. मुझे अचरज हुआ था जब बाबा को मंच से कूदते देखा और पता चला कि महिलाओं के कपडे पहन कर बाबा कहीं निकल गए. June 15, 2011 9:38 PM सुलभ said...
सिर्फ योग प्रशिक्षक बाबा रामदेव । हाँ ये कहना सही होगा.मेरे विचार से अब बाबा रामदेव को दो में से एक ही रास्ता अपनाना चाहिए. या तो सीधे सीधे राजनीतिक लड़ाई लड़ते हुए केंद्र की भ्रष्ट सरकार का समापन कर सख्त कानूनों का प्रतिपादन करें,या सिर्फ योग और संत महात्मा के कठिन मार्गों पर चलें. दोनों का समन्वय मुश्किल है.मैं फिर भी रामदेव के समर्थन में इसलिए हूँ क्योंकि उन्होंने "भारत स्वाभिमान" को बल दिया, ये वही विचारधारा है जो युवाओं को अपने देश में स्वनिर्मित तकनीक व उद्ध्यमशीलता को बहुआयामी बनाने के लिए मार्ग बनाते हैं.
मैं ये देखता आया हूँ अंतर्राष्ट्रीय बिजनेस और तकनीक में हम गुण संपन्न होते हुए भी अमेरिका और अन्य विकसित देशों से बहुत पीछे हैं. ये तो हुई मेरे सपने की बात भारत अपने युवाओं के संकल्पों द्वारा सिरमौर बने.परन्तु आम जनता - आज जब किसी भी राष्ट्रीय पार्टी में बेहतर क़ानून व्यवस्था, इमानदार राज-व्यवस्था के प्रति गंभीरता नहीं दिखती, सब के सब संख्या और वोटबैंक समीकरण पर चुनाव जीतने की कोशिश मात्र करते हैं; ऐसे में आम जन रामदेव की पार्टी को एक मजबूत विकल्प के रूप में देख रहे हैं. June 15, 2011 9:52 PM तिलक राज कपूर said...
सर्वप्रथम तो साधुवाद आपके इस बेबाक आलेख के लिये। बाबा(?) रामदेव का आचरण एक सामान्‍य व्‍यक्ति के लिये भी प्रश्‍नचिह्न बन गया है। देखा जाये तो एक योग प्रशिक्षक के दंभ तले एक सामान्‍य व्‍यक्ति दब गया है। जिस व्‍यक्ति का योग गुरू के रूप में व्‍यापक सम्‍मान था वही अपनी अपरिपक्‍व टिप्‍पणियों के कारण आज हास्‍य का पात्र है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के मूल विकारों में सबसे कष्‍टकर विकार 'अहंकार' की स्थिति में पहुँचने का क्‍या परिणाम होता है इसके स्‍वत:-स्‍पष्‍ट प्रमाणों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। यहॉं एक बात और महत्‍वपूर्ण हो जाती है कि योग एक विज्ञान है और राजनीति एक नीति। सभी के विज्ञान और नीति दोनों पक्ष पुष्‍ट हों ये आवश्‍यक नहीं। June 15, 2011 10:27 PM दिगम्बर नासवा said...
बाबा रामदेव ने ऐसा क्यों किया ... ये तो समझ से परे है ... उन्हें डर की ज़रूरत नही थी, इस तरह भागने की ज़रूरत नही थी और उन्हे इस बात का ख़ामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है ... पर इतना ज़रूर कहूँगा आज राजनीतिक माहोल इतना ज़्यादा खराब है की किसी भी अच्छे काम को विवादित बना कर आपस में ही जनता को भिड़ा देती या ये राजनीति ... मेरी समझ से बाबा ने योग और देश कीअस्मिता को उठाने में बहुत योगदान दिया है ... चाहे पैसे ले कर ही किया ... उन्होने मुद्दा भी सही उठाया ... सब की सहयोग भी करना चाहिए .... हाँ राजनीति नही करनी चाहिए थे ....
ये एक कड़ुवा सच है की आज की या अधिकतर सरकारें पैसा तो अंधाधुन कमा ही रही हैं वो देश को भी बर्बाद कर रही हैं ... मेरे विचार से अगर ध्येय (विदेशों से पैसा लाना) उचित है तो उसपर ध्यान ज़्यादा होना चाहिए और जहाँ तक विवादित करने की बात है ये सरकार मीडीया की मदद से किसी का भी चरित्र खराब कर सकती है .... अन्ना, शांति भूषण, तमाम साधू सन्यासी ... किस को छोड़ा है मीडीया या सरकार ने .... June 15, 2011 11:46 PM पंकज सुबीर said...
मैं भी 29 मई तक बाबा के अभियान को लेकर बहुत सकारात्‍मक था, मुझे भी लग रहा था कि जिस दौर में सबसे बड़े घोटाले सामने आ रहे हों उस दौर में किसी को तो सामने आना ही होगा. लेकिन 30 मई को अपने शहर में ही पैसे का जो नंगा नाच देखा उससे सिर शर्म से झुक गया, एक आम आदमी के घर रुकने का बाबा का कार्यक्रम अचानक ही उस ठेकेदार के घर रुकने में बदल गया. और भी बहुत कुछ था जो ठीक नहीं था. वर्तमान में देश सबसे भ्रष्‍ट दौर से गुज़र रहा है, कहीं कोई भी ऐसा नहीं है जो उम्‍मीद की किरण बन कर सामने आये. बाबा ये कर सकते थे, लेकिन कैसे और कहां चूक गये ये समझ में नहीे आ रहा. बाबा का आंदोलन देश का आंदोलन हो सकता था, बाबा के पास अन्‍ना हजारे से भी ज्‍यादा फालोविंग है, वे चाहते तो चमत्‍कार करके दिखा सकते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. June 16, 2011 12:15 AM दिगम्बर नासवा said...
आपका कहना उचित है गुरुदेव ... शायद अभी और तप करना है बाबा को ... और त्याग करना है ... इन नेताओं की चालें सीखनी हैं ... इन भ्रष्ट नेताओं के मुक़ाबले एक नया जन आंदोलन खड़ा करना पढ़ेगा ... अपनी नेता गिरी को चमकाना छोड़ना पड़ेगा ... तभी कुछ संभव होगा ... अभी तो लगता है भ्रष्टाचारी जीत गये हैं ये युद्ध बाबा से ..... June 16, 2011 1:28 AM wgcdrsps said...
यही सत्यता है इस स्पष्ट आलेख के लिए अनेकानेक साधुवाद मैं तो समझता हूँ कि साधु संतों का समर्थन भी काले धन को दे करके ही प्राप्त किया गया है इसमें भी शुचिता पारदर्शी नहीं लगती विंग कमांडर श्रीप्रकाश शुक्ल London June 16, 2011 4:17 AM wgcdrsps said...
यही सत्यता है इस स्पष्ट आलेख के लिए अनेकानेक साधुवाद मैं तो समझता हूँ कि साधु संतों का समर्थन भी काले धन को दे करके ही प्राप्त किया गया है इसमें भी शुचिता पारदर्शी नहीं लगती विंग कमांडर श्रीप्रकाश शुक्ल London June 16, 2011 4:18 AM wgcdrsps said... This post has been removed by the author. June 16, 2011 4:18 AM राकेश खंडेलवाल said...
कहां छुपा रह सका सत्य जो कितने ही पर्दों ने ढांपासुविधाओं का मूल्य सदा ही, हुये विरक्तों ने ही नापाहाथी वाले दांतो के अनुयायी रह जो चलते आयेजहां सत्य से हुआ सामना, उनका नख से शिख तक कांपा June 16, 2011 4:47 AM Udan Tashtari said...
बहुत सटीक और बेबाक लेखन...साधुवाद!! शायद अनेक यही कहना चाह कर भी नहीं कह पा रहे हैं. June 16, 2011 4:53 AM योगेन्द्र मौदगिल said...
वाह भाई जी वाह २०० प्रतिशत सहमत हूँ आपसे.... इतनी मोटी कमाई के बावजूद बाबा पतंजली योगपीठ की केन्टीन में बाज़ार से दोगुने रेट पर खिचड़ी और शक्कर तक इस तर्क के साथ बेचते हैं की वह आश्रम का प्रोडक्ट है इसलिए वास्तव में शुद्ध है.....
उन्हें अपने मुनाफे के समक्ष देश का गरीब और निम्न मध्यमवर्गीय समाज नज़र नहीं आता.... सरकार को बाबा को दिए दान पर आयकर छूट हटा लेनी चाहिए...... केवल बाबा रामदेव की ही नहीं समस्त धर्मस्थलों पर बने फाइवस्टार आश्रमों की भी... साफगोई के लिए साधुवाद स्वीकारें.
मैंने भी दो छंद अभी कहे हैं लगभग १५ मिनट तक अपने ब्लाग पर पोस्ट कर रहा हूँ जिन्हें पढ़ कर आप मह्सूसेंगे की मैं एक एक कदम आपके साथ ही मिला रहा हूँ............. June 16, 2011 9:14 AM लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...
ॐ भारत से दूर रहकर भारत भूमि की सुदीर्घ परम्परा व संस्कृति सभर विरासत पर मेरा माथा सदैव उन्नत हुआ है साथ साथ , स्पष्ट वक्ता होने के नाते कहूंगी कि ,आज सन २०११ तक आ पहुंचे मेरे जन्म स्थान भारत को सावधान होने की , स्व हित को प्रमुखता देने की गंभीर आवश्यकता है .
" देश " कोई शून्य मे बसी इकाई नहीं हरेक नागरिक की आशाओं और समर्पण से यह समृध्ध और खुशहाल होकर अस्तित्त्व प्राप्त करता भूखंड है . मेडम सोनिया जी राज करें और आम जन झुन्झालाती रहे इस प्रक्रिया से भारत की आम जनता कदापि सुखी नहीं हो पायेगी . ' सर्वोदय ' देनेवाले विनोबा जी या गांधी जी जैसे नेता और मेरे पापा जैसे संत कवि , आज के भारत मे नहीं हैं -
आप सब जो हो उन्हें हीम्मत से , धैर्य से , सदबुध्धि से आगे भविष्य को संवारना होगा . लोकतंत्र मे अपना पक्ष , अपना विचार सामने रखना आवश्यक है पर सर्वहिताय , आगे क्या करना चाहीये ये मुद्दा भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है . ये ना सोचें के एक अकेला क्या कर लेगा ? आप जहां हैं, जो भी कर सकते हैं , क्षमता अनुसार अवश्य करें ...भारत का भावि उज्जवल है इस बात पर मुझे पूरा भरोसा है ..समझदारों के लिए एक इशारा काफी है जयहिंद - लावण्या June 16, 2011 10:56 AM अनूप भार्गव said...
मुझे सुबीर जी का यह आलेख अच्छा लगा था इसलिये इसे ’हिन्दी भारत’ समूह में भेजा था । डा.दीप्ति गुप्ता जी ने इस पर एक टिप्पणी लिखी है जो वह कूछ कारणों से इस ब्लौग पर पोस्ट नहीं कर पाईं । उन के अनुरोध पर मैं इसे पोस्ट करने का प्रयास कर रहा हूँ । इस टिप्पणी में विचार पूर्ण रूप से दीप्ति जी के हैं ।
अनूप भार्गव
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योगाचार्य बाबा रामदेव के विरुध्द, जाने माने कथाकार और गज़लकार पंकज सुबीर के उवाच का जवाब ----
पंकज जी, आपको एक नहीं, अनेक भ्रान्तियाँ हैं.पहली बात तो बाबा रामदेव ने कब कहा कि वे संन्यासी है ? सारी दुनिया जानती है कि वे एक आयुर्वेदाचार्य हैं जिसके अंतर्गत योग प्रशिक्षण, व आयु और स्वास्थ्य वर्ध्दन की तमाम औषधियों के सेवन की जानकारी देना उनका कर्तव्य है. यही वे कर रहें हैं. २) अगर उनकी संपत्ति अवैध होती तो सरकार अब तक जब्त कर चुकी होती. सरकार से भी सर्वोपरि- सुप्रीम कोर्ट जब्त कर चुका होता. कोई व्यक्ति मेहनत करके जनता जनार्दन के असाध्य रोगों के रामबाण इलाज दे रहा हो और उस प्रक्रिया में धन भी लगा रहा हो और धन लगाने पर अर्थशास्त्र के मूलभूत नियमानुसार, बदले में उसके पास धन भी आ रहा हो - तो इसमें गलत या अनैतिक क्या है? उनके सारे accounts clean और clear हैं, हर साल वे बिना नागा income tax भरते हैं. इससे अधिक और क्या उम्मीद करते हैं आप ? जो योगाचार्य/ औषधाचार्य रामदेव और उनके सहायक बालकृष्ण जी, न जाने कितने लाखों, करोड़ों रोगों का उपचार भारत में ही नहीं वरन, विदेशों में भी कर चुके हों, उन पर इस तरह उंगली उठाना, क्या आपको शोभा देता है ? बिना सोचे समझे भेडा चाल में आप भी शामिल हो लिए ? जब आप जैसे बुध्दिजीवी और विचारशील लोग - किसी इंसान की सारी अच्छाईयों को दरकिनार कर, उसे पतित , भ्रष्ट और न जाने क्या-क्या सिध्द करने पर तुल जाते है तो, मेरा लोगों की इंसानियत पर से विश्वास उठने लगता है. योगी पुरुष मात्र दैहिक रोगों का खात्मा करने तक ही नही अटके रहते अपितु,समाज के रोग दूर करना भी अपना फर्ज़ समझते हैं. भ्रष्ट सरकार की नाक के नीचे बड़े बड़े 2g scam हो रहे हो, जनता का धन तरह -तरह से खीच कर बेईमान लोग विदेशी बैंको में भर रहे हो, इस पर यदि बाबा समाज के नासूर का इलाज करने का बीड़ा उठा लेना चाहते हैं, तो आप उनके इस सत्कार्य को नज़र क्यों लगा रहे हैं ? ठीक है उनकी नीयत में आपको खोट नज़र आ रहा है, तो आप ही कीजिए समाज का उध्दार. नहीं कर सकते तो,मेहरबानी करके, करने वाले कर्मयोगी की टांग तो मत खींचिए. आपको अपने एक-एक संदेह का और जो आपत्तिजनक शब्द आपने कर्मयोगी बाबा पर उछाले हैं, सबका जवाब धीरे-धीरे मिल जाएगा. आने वाला समय सब दूध का दूध और पानी का पानी कर देगा.
ज़रा धैर्य रखें !
डा. दीप्ति गुप्ता २/ए आकाशादूत १२/ए, नार्थ एवेन्यू,कल्याणी नगर,पूना मोबाइल : 9890633582 June 16, 2011 7:24 PM पंकज सुबीर said...
सभी का धन्‍यवाद, दीप्ति जी आपका भी आभार कि आपने दूसरे पक्ष को भी सामने रखा । निश्‍चित रूप से हर बात के दो पक्ष होते हैं । दो प्रकार से सोचा भी जा सकता है । और हर व्‍यक्ति हर घटना को अपने अनुभवों के आधार पर सोचता है । इस घटना को लेकर मेरे अनुभव कटु रहे तो मैं इसे अपने तरीके से से देख रहा हूं । आपके अनुभव अच्‍छे रहे होंगे तो आप उसे अपने तरीके से देख रहीं हैं। किसी दार्शनिक ने कहा है कि जब दो लोग बहस करते हैं तो दोनों अपनी जगह सही होते हैं । बात वही अंग्रेजी के 6 और 9 की है । आप उस तरफ से देख रहीं हैं और मैं इस तरफ से । विरचुअली हम दोनों सही हैं । 30 और 31 मई को अपने ही शहर सीहोर में बाबा रामदेव के आगमन पर बहुत नज़दीक से जो कुछ मैंने देखा मेरे लेख का आधार वही है । बाबा रामदेव से व्‍यक्तिगत रूप से मिलने पर आपने जो कुछ देखा होगा आपकी टिप्‍पणी का आधार वही होगा । पुन: आभार ।