Thursday, January 21, 2010

शिवना के सरस्वती पूजन में शामिल हुए बुध्दिजीवी, शिवना के नये काव्य संग्रह अनुभूतियां का विमोचन

अग्रणी साहित्यिक संस्था शिवना ने वसंत पंचमी के अवसर पर ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का पूजन समारोह आयोजित किया । आयोजन में शहर के साहित्यकार, पत्रकार, शिक्षाविद तथा बुध्दिजीवी शामिल हुए । स्थानीय पीसी लैब पर आयोजित सरस्वती पूजन तथा गोष्ठी के कार्यक्रम में शिक्षाविद् प्रो: डॉ. भागचंद जैन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी की प्राध्यापक डॉ. पुष्पा दुबे ने की ।

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सर्वप्रथम पंडित शैलेश तिवारी के मार्गदर्शन में शिवना के संस्थापक वरिष्ठ साहित्यकार श्री नारायण कासट ने सभी अतिथियों के साथ माँ सरस्वती का विधिपूर्वक पूजन किया ।

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तथा सभी उपस्थित जनों ने माँ सरस्वती को पुष्पाँजलि अर्पित की ।

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प्रथम खंड में विचार गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए संचालक के रूप में श्री नारायण कासट ने वसंत पंचमी तथा निराला जयंती पर विस्तृत प्रकाश डाला । वरिष्‍ठ साहित्‍यकार श्री कासट लम्‍बी बीमारी से लगभग ढाई साल तक ग्रस्‍त रहने के बाद किसी साहित्यिक आयोजन में उपस्थित हुए । वे पिछले ढाई साल से लगातार बिस्‍तर पर ही रहे । उन्‍होंने अपने संबोधन में कहा कि मुझे तो अब लग ही नहीं रहा था कि मैं अब वापस आ पाऊंगा किन्‍तु आज पुन: यहां आकर मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरा नवजीवन हो गया है । ये सबकी शुभकामनाओं का ही फल है ।

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उन्होंने कहा कि जो पुरातन हो चुका है उसका अंत और नूतन का प्रारंभ ही बसंत है । इसे हम कह सकते हैं कि पुरातन का बस अंत ही बसंत हैं ।

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इस अवसर पर शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित नये काव्य संग्रह इंग्लैंड के भारतीय मूल के कवि श्री दीपक चौरसिया मशाल के अनुभूतियाँ को शिवना के श्री रमेश हठीला ने माँ सरस्वती के चरणों में अर्पण किया  । साथ ही भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित पंकज सुबीर के कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी को भी मां सरस्वती को अर्पित किया गया ।

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मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रो. भागचंद जैन ने कहा कि वसंत बताता है कि हमको प्रेम बाँटना सीखना चाहिये । प्रेम और स्नेह बाँटने से मनुष्य जीवन सफल हो जाता है ।

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अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. डॉ पुष्पा दुबे ने कहा कि वसंत पंचमी सरस्वती के अवतरण का दिवस है और हमारी लेखनी को मां सरस्वती के आशीर्वाद की आवश्यकता हमेशा ही बनी रहती है । उन्होंने कहा कि साहित्यकार के लिये संवेदनशील होना सबसे आवश्यक है और ये संवेदना उसे माँ सरस्वती ही प्रदान करती हैं । उन्होंने पंकज सुबीर के कहानी संग्रह ईस्ट इंडिया कम्पनी पर भी चर्चा की ।

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कार्यक्रम के दूसरे खंड में आयोजित काव्य गोष्ठी का शुभारंभ कु. रागिनी शर्मा ने माँ सरस्वती की वंदना के साथ किया । रागिनी शर्मा ने श्री नारायण कासट के आग्रह पर लिंगाष्टक का भी सस्वर पाठ किया । जिस पर श्रोता मंत्रमुग्‍ध हो गये  । उल्‍लेखनीय है कि रागिनी प्रदेश के वरिष्‍ठ छायाकार श्री राजेंद्र शर्मा की सुपुत्री हैं तथा संस्‍कृत में विशेष शिक्षा प्राप्‍त कर रही हैं । कालीदास के संस्‍कृत नाटक में अभिनय भी कर चुकी हैं ।

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कवि गोष्ठी में लक्ष्मण चौकसे ने अपनी छंद मुक्त कविता आगे बढ़ता चल, श्री द्वारका बाँसुरिया ने अपना गीत जीवन रथ के सुख दुख दो पहिये चलना जीवन का सार, कवि लक्ष्मीनारायण राय ने दर्दीली जिंदगी और घुटन भरे गीत, प्रस्तुत की ।

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रागिनी शर्मा ने कविता आज रायाभिषेक हुआ था श्रीराम का, रमेश हठीला ने गीत मेरे अगर गाएँ मेरे अधर, ये तो एहसान होगा मेरे गीत पर, गूंगे प्राणों को मिल जाए स्‍वर माधुरी गुनगुना दें मेरे गीत को आप गर,  श्री शैलेश तिवारी ने छंदमुक्त कविता माँ शारदे को धन्यवाद और पंकज सुबीर ने गीत तेज समय की नदिया के बहते धारे हैं, यायावर हैं, आवारा हैं, बंजारे हैं प्रस्तुत किये ।

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कार्यक्रम का संचालन कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार श्री नारायण कासट ने अपने कई मुक्तक पढ़े दिल भी ना साथ गुँथे जब तक फूलों का हार अधूरा है, जैसे रागों के प्राण गिना स्‍वर का संसार अधूरा है, और श्रोताओं के बहुत अनुरोध पर उनहोंने अपनी सुप्रसिद्ध नथनिया गजल का सस्वर पाठ किया । उनका एक  मुक्‍तक-

आंखों में वासंती आमंत्रण आंज कर,

जूड़े में मदमाती मलय गंध बांध कर

गुपचुप सन्‍नाटे में निकली अभिसारिका,

संयम की लजवंती देहरी को लांघकर 

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अंत में शिवना की ओर से जयंत शाह ने आभार व्यक्त करते हुए अतिथियों को धन्यवाद दिया । कार्यक्रम में सर्वश्री अनिल पालीवाल, राजेन्द्र शर्मा, हितेन्द्र गोस्वामी, उमेश शर्मा, चंद्रकांत दासवानी, श्रीमती जैन, नरेश तिवारी, सुनील शर्मा, राजेश सेल्वराज, सुरेंद्र ठाकुर, सनी गोस्वामी, सुधीर मालवीय सहित प्रबुध्द श्रोता उपस्थित थे ।

1 comment:

गौतम राजऋषि said...

रोचक प्रस्तुति गुरुदेव...वो अभिनव जी ने जो कोई आधुनिक रिकार्डर भिजवाया है उसका उपयोग हुआ ही होगा...रपट के संग-संग जो रिकार्डिंग भी सुनने को मिल जाती तो मजा आ जाता।

हमारे गुरु के गुर श्रद्धेय कासट जी को चरण-स्पर्श और "दर्द बेचता हूं" के बाद अब इस "आवार हैं, बंजारे हैं" को भी सुनने की ललक बढ गयी है।