कहते हैं कि अध्यापक समाज के लिये दीपक की तरह होते हैं जिसके उजाले में समाज अपने आपको देखता है । लेकिन अगर ये दीपक ही अंधकारमय हो जाये तो समाज फिर अपने हिस्से का उजाला तलाश करने कहां पर जायेगा । छायावाद की शीर्ष कवयित्री महादेवी वर्मा जिनका काव्य जिनका जीवन सब कुछ मिसाल रहा है उनके चित्र के सामने जूते चप्पल उतार कर ये अध्यापक क्या कहना चाह रहे हैं ये प्रश्न अभी अनुत्तरित है ।
डाइट ( डिस्ट्रिक्ट इन्स्टीट्यूट आफ एजुकेशन एण्ड ट्रेनिंग ) ये वो संस्था है जो शिक्षकों को प्रशिक्षण देने का काम करती है । लेकिन प्रशिक्षण देने वाली ये संस्था शायद स्वयं ही नहीं जानती है कि महादेवी वर्मा के नाम के आगे लगा हुआ देवी शब्द केवल शब्द नहीं है बल्कि हिंदी साहित्य में उनको सचमुच ही ये स्थान प्राप्त है । मध्यप्रदेश के जिला मुख्यालय सीहोर में डाइट प्रशिक्षण केन्द्र पर इन दिनों शिक्ष्कों का प्रशिक्षण कार्यक्रम चल रहा है । इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में डाइट के प्रशिक्ष्कों द्वारा पिछले एक या दो साल में नियुक्त हुए अध्यापकों को प्रशिक्षण देने का कार्य किया जा रहा है । इसी के तहत मंगलवार को भी एक कार्यशाला चल रही थी ।
कार्यशाला में चूंकि जिन अध्यापकों को प्रशिक्षण प्राप्त करना था उनको ज़मीन पर बैठना था । इसलिये उन्होंने अपने जूते चप्पल बाहर उतारे । लेकिन शिक्षा के इन कर्णधारों को ये नहीं दिखाई दिया कि वे अपने जूते चप्पल महादेवी वर्मा के चित्र के सामने उतार रहे हैं जिसे कि ठीक वहीं रखा गया था जहां पर जूते चप्पल उतारे जाते हैं ।
हो सकता है कि दोनों ही एक दूसरे पर दोषारोपण करें । डाइट का प्रबंधन नव शिक्षकों पर दोष लगाए कि उन्होंने देखा क्यों नहीं कि वहां पर महादेवी वर्मा का चित्र रखा है और नव शिक्षक प्रबंधन पर दोष लगाएं कि उन्होंने महादेवी वर्मा जी का चित्र ठीक उसी स्थान पर क्यों रखा जहां पर कि जूते चप्पल उतारे जाने थे । लेकिन वास्तवकिता ये है कि दोषी दोनों ही है । दोषी इसलिये हैं क्योंकि प्रशिक्षण देने वाले भी और प्रशिक्षण लेने वाले भी ये दोनों ही शिक्षक हैं, अध्यापक हैं । वे जिन पर समाज को दिशा दिखाने की जवाब दारी है । तो यदि ये दोनों ही नहीं जानते कि महादेवी वर्मा कौन हैं तो दोष दोनों का ही है । उन सैंकड़ों शिक्षकों में से जो कि यहां जूते उतार कर अंदर जा रहे थे किसी एक को भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि जूते महादेवी वर्मा के चित्र के सामने उतारे जा रहे है । इसका मतलब ये है कि उनमें से कोई जानता ही नहीं था कि महादेवी वर्मा कौन हैं ।
इसे हिंदी साहित्य का दुर्भाग्य नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगें कि छायावाद की शीर्ष कवयित्री, भारतीय ज्ञानपीठ से लेकर सभी प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त करने वालीं महादेवी वर्मा जी के चित्र को मध्यप्रदेश का अध्यापक जूते चप्पलों के बीच स्थान प्रदान कर रहा है ।
1 comment:
सही तो ये है कि चित्र को गलत स्थान पर रखा हुआ है उसे भूमि से कम से कम 2.5 फुट ऊंचा तो होना ही चाहिए। या फिर कमरे में जूते चप्पल वर्जित होने चाहिए।
और ये वर्ड वेरीफिकेशन तो हटा ही दें।
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